
देवनी गोमाता
यह गोमाता मुंबई प्रांत की डांगी गोमाता के साथ ज्यादा मिलती जुलती है| इसमे गीर गोमाता जैसे थोड़े अणसार देखने मिलते है| इस गोमाता की सींग भी गीर गोमाता जैसी है| देवकी गोमाता के बैल के भी मजबूत बांधे होते है और खेत में काफी उपयोगी होते है| दिल्ही के प्रथम गो प्रदर्शन मे हैदराबाद राज्य से देवकी गोमाता लाई गई थी। यह नसल का ज्यादा से ज्यादा तीन हजार रतल दूध एक वियारण में मिला था. हैदराबाद मे यह नसल को सबसे ज्यादा दूध देने वाली नसल का एवोर्ड भी मिला था।
डांगी गोमाता
यह नसल
की गोमाताएँ ज़्यादातर मुंबई और नासिक विस्तारों में देखने मिलती है| मूल डांग के जंगलो की यह गोमाता गुजरात के वांसदा, जौहर और धरमपुर के
विस्तार में देखने मिलती है| यह गोमाता के बैल भी पहाड़ी विस्तारों मे काफी उपयोगी
है| कितनी भी मजदूरी कर्वा
लो डांगी बैल फिरभि बीमार नहीं पड़ते| यह गौवंश का रंग लाल, सफ़ेद और काला होता है|


मेवाती गोमाता
मूल राजस्थान की यह जाति के गौवंश काफी सरल होते है| यह गोमाता भारी से भारी
हल भी सरलता से खिच लेते है| यह गोमाता थोड़ा कम खाती है| उनका शरीर सफ़ेद रंग का
और मस्तक लाल रंग का होता है| इसमे गीर गोमाता से लाल रंग भी होते है| इन के कान जुके हुवे और चेहरा
गीर गोमाता जेसा होता है| मेवाती गोमाता के पैर ऊंचे होते है|
नीमाड़ी गोमाता
यह नसल की गौवंश की गाय ज्यादा स्फूर्तिली होती है| इनका रंग लाल ओर कान मध्यम कद के होते है| लाल रंग में सफ़ेद धब्बे इस गोमाता में देखने मिलते है| यह गोमाता काफी उपयोगी है|


कांकरेज गोमाता
कांकरेज गोमाता मूल गुजरात की है और वाढ़ियार से विकसित हुई है| राधनपुर के आसपास, कच्छ, बनासकांठा और वडोदरा में कांकरेज गोमाता देखने मिलती है| कांकरेज गौवंश चलने में काफी मजबूत और मालवाहक वाहनो में भी खूब उपयोगी है| कांकरेज की छाती चौड़ी, शरीर मजबूत और सींग बड़े होते है| उनकी चमड़ी मोटी और गलकंबल साधारण होता है| सामान्य गोमाताओं से उनकी पुछ छोटी होती है| यह गोमाता आज भी गुजरात और राजस्थान के गावों में देखने मिलती है| संख्या की दृष्टि से कांकरेज गुजरात में प्रथम क्रम की गोमाता है|
मालवी गोमाता
मूल मालवा से विकसित यह जाती भी मध्य प्रदेश के आदिवासी विस्तारों में और
ग्रामीण विस्तारों में खूब उपयोगी है| यह गोमाता को आज भी गौचर भूमि नसीब है| गाँव में गाड़ा खींचने में
भी यह गौवंश के बैल उपयोगी है| उनका रंग खाखी और काला है| जैसे जैसे गोमाता वृद्ध
होती है इसका रंग फीका अर्थात सफ़ेद होता जाता है| यह गोमाता कम खाना खाती
है| मध्य प्रदेश के गवों में
उत्तर भाग में ग्वालियर प्रांत की मावली और दक्षिण भाग की मावली मे थोड़ा फर्क है|


नागोरी गोमाता
मूल राजस्थान के नागोर के साथ संबन्धित नागोरी गायों और नागोरी नंदी आज भी
गुजरात,
राजस्थान और महाराष्ट्र में देखने मिलती है| जोधपुर के आसपास के विस्तारों
में नागोरी बैल देखने मिलते है| यहाँ पर्वतसर के मेले में नागोरी बैल का मेला लगता है| इंका मुख संकीर्ण और
लंबा होता है| और सींग
का आकार अर्धचंद्राकार होता है| त्वचा पतली और गलकंबल छोटा होनेसे उनकी सुंदरता अलगसी
है| परंतु नागोरी बैल ज्यादा
मजबूत होने के कारण उनका महत्व ज्यादा है| परंतु बैल से होती खेती
कम होने के कारण आज यह गौवंश की गोमाता धीरे धीरे नाश हो रही है|
थरपाकर गोमाता
रण प्रदेश के साथ जुड़ि हुई थरपाकर कच्छ, राजस्थान और महाराष्ट्र में
देखने को मिलती है| रण के
रेतीले विस्तार पर चलने की क्षमता धराने वाली यह गोमाता कम खाना खाती है| इसकी पनि और खाने की
ज़रूरत कम होती है, पर यह
गोमाता दूध ज्यादा देती है| यह गोमाता के गोबर से रण विस्तारों में लोग मकान
बांधते है| पंजाब
के कर्नाल में आई. ए. आर. इन्स्टीट्यूट में कुमार नाम की एक गोमाता ने ३१३ दिवस
में ८७३४ लीटर दूध दिया जो प्रतिदिन २८ रतल हुआ। ऐसी थरपाकर गोमाता की भी अनेक
विशेषताएँ हैं।


बचौर गोमाता
बिहार प्रांत की यह गोमाता कोइलपुर में परगना में विकसी है| यह जाती के बैल भी खूब उपयोगी हैं| यह गोमाता बहोत कम दूध देती है, २ से ४ लिटर ज्यादा से ज्यादा| यह गोमाता का रंग खाखी, सिर बड़ा, नेत्र बड़े और कान जुके होते है|
पवार गोमाता
उत्तर प्रदेश की पीली भीत प्रांत की यह गोमाता राज्य के उत्तरी भाग में देखने
मिलती है| सिर
संकीर्ण और लंबे सींग यह गोमाता की खूबी है| पवार गोमाता के सींग की
लंबाई १२ से १८ इंच होती है| यह सफ़ेद और काले रंग की ज्यादा देखने को मिलती है| पुंछ लंबी, ज्यादा स्फूर्तिली और
क्रोधी प्रकृति की है| इस लिए
कोई अज्ञात व्यक्ति पास में जाता है तो तुरंत प्रतिक्रिया करती है| पवार गोमाता उत्तर प्रदेश
के मैदान के विस्तारो में मुक्त मन से खाना ज्यादा पसंद करती है|


भगनारी गोमाता
उत्तर भारत और मध्य प्रदेश में देखने मिलती यह गोमाता का उदभव द्धभागग नाम के
विस्तार में होने से उनको भागनारी कहते है| यह गोमाता नदी विस्तारो
में ज्यादा रहती है और नदी किनारों का घाँस ज्यादा पसंद करती है| यह जाती के भी २ प्रकार
हैं| छोटी काठि में और बड़ी काठि
में। यह गोमाता प्रचुर मात्रा में दूध देती है| और इस लिए गोपालको में ज्यादा
प्रसिद्ध है|
दज्जल गोमाता
भगनारी गोमाता का एक वंश है| यह पंजाब दोराहाजीखान जिले
में बड़ी संख्या में देखने को मिलती है| ऐसा माना जाता है की भगनारी गोमाताओं को पंजाब में
लाकर दज्जल प्रजाति को विकसित किया गया था| दूध ज्यादा देने के कारण
पंजाब और उत्तर प्रदेश में यह गोमाता का अनोखा महत्व है|


गांवलाव गोमाता
यह गोमाता भारत के मध्य प्रांत से विख्यात नसल है| सातपुडा के वर्धा जिल्ले
में यह गोमाता देखने को मिलती है| नागपूर मे भी देखने को मिलती है| मध्यम कद की यह गोमाता
लंबे सिर, छोटे
सींग और छोटे गलकंबल मे देख सकते है| यह गोमाता का रंग सफ़ेद है और लंबी यात्रा करने के लिए
सक्षम है जिसके कारण पूरे मध्य भारत में यह गोमाता देख सकते है| गांवलाव गोमाता दूध भी अछि मात्रा
में देती है जिसकी वजह से यह मध्य प्रांत के किसानों में ज्यादा लोकप्रिय है| कुछ जगह खामी होने के कारण
आज दूध कम देने लगी है| परंतु अछे आहार प्रणालि से यह गोमाता का विकास कर सकते है
हरियाणी गोमाता
ज्यादा दूध देने वाली प्रसिद्ध एसी हरियाणी गोमाता मूल हरियाणा और पंजाब में देख सकते हैं| राजस्थान मे उत्तर भाग
में भी हरियाणी गोमाता देख सकते है| सफ़ेद और खाखी रंग मे देखने मिलती यह गोमाता खूब तेज़ी
से चलने वाली गोमाता है| उसके बैल भी खेति में तेज़ी से काम करने में उपयोगी
हैं| हरियाणी गोमाताओं ने भी
देश में रेकॉर्ड ब्रेकिंग दूध देकर भारतीय देसी गायों में एक अनोखी पहचान बनाई है|


हाँसी हिस्सर गोमाता
पंजाब मे हिस्सार विस्तार की यह गोमाता हांसी नामकी नदी के किनारे विकसी है| यह गौवंश भी हरियाणी गोमाता
जेसी मजबूत है| सफ़ेद
और खाखी रंग मे देखने को मिलती है| और यह गोमाता काफी मजबूत होती है| उत्तर भारत के पशु मेले में
यह वंश के बैल पारितोषिक से सनमानित किए गए है|
अंगोल गोमाता
मद्रास प्रांत अंगोल विस्तार में यह गोमाता देखने को मिलती है। भारतीय गौवंश में
अंगोल गोमाताओं का आगवा स्थान है| पुराने समय में गंतुर जिल्ले में किसान उनका उपयोग
करते थे। यह विस्तार में पानी ज्यादा होने के कारण गोमाता को चलने में काफी तकलीफ
पड़ती है| कम चारे
में भी अंगोल गोमाता जीवित रेह सकती है| अंगोल का शरीर लंबा होता है और गरदन छोटी होती है|


राठी गोमाता
कम चारा, ज्यादा
दुध ज्यादा चलने वाली यह दूधल गोमाता है| लंबा रास्ता काटने वाली यह गोमाता मालधारियों के साथ विचरण कर सकती है| उपरोक्त तीन गुणो के
कारण यह गरीब की मुड़ी समान है जब नागोरी गोमाता और नंदी धनवानो की गाय कहलाते है|
साहीवाल गोमाता
साहिवाल ज्यादा दूध देने वाली दूधल गोमाता की श्रेणी में अति है। यह नसल अफ़ग़ानिस्तान
और उत्तर भारत में देखने मिलती है| उत्तर भारत के शाहेरो के साथ पंजाब के दक्षिण भाग में
भी यह गोमाता देखने को मिलती है|


सिंघी गोमाता
कराची और बलूचिस्तान में विकसित यह देसी गोमाता पुराने समय में एक उच्च प्रकार
की दुधाल गोमाता मनी जाती थी. इस में अफघान और गीर नसल का मिश्रण देखने को मिलता
था. सिंघी गोमाता का दुधल गोमाता में आज भी स्थान है| पाकिस्तान मे सिंध मे यह
गोमाता देखने को मिलती है| गर्मी और ठंडी में भी स्वस्थ रहती है| सिंधी गोमाता आकार में छोटी
होती है| परंतु
दूध देने की क्षमता ज्यादा है|
घन्नी गोमाता
घन्नी गोमाता पंजाब में एक स्वतंत्र जाती है| मध्यम बांधे की और खूब
स्फूर्तिली यह गोमाता आज भी पंजाब और सीमा प्रांतो में देखने को मिलती है| उनके बैल ज्यादा उपयोगी
है| यह गोमाता सात महिना ही
दूधा देती है| परंतु
धन्नी बैल की खूबी यह है की वह बहोत तेज़ी से छोटे छोटे पेर रख कर दोड सकते है| वो खेत मे काफी उपयोगी है|


अमृत महल गोमाता
कर्णाटक की वतनी एसी अमृत महाल मैसूर के राजवीरों द्वारा विकसित की हुवी नसल है| भुखरे या काले रंग की यह
गोमाता के सिंग तलवार जेसे होते है| यह गोमाता ज्यादा चंचल और गुस्सेवले स्वभाव की होती
है|
प्राचीन भारत की पहाड़ी गोमाता
हिमालय में एक छोटे कद की गोमाता देखने को मिलती है| यह गोमाता प्राग ऐतिहासिक युग से चली आ रही है |माथे पर और गलकंबल पर सफ़ेद धब्बे यह गोमाता की खूबी है| आज यह गोमाता भारत की हरेक पहाड़ी प्रदेश में देखने को मिलती है| यह गोमाता कम दूध देती है| परंतु अगर अच्छे से गोपालन किया जाय तो यह गोमाता की दूधा की मात्रा में और गोमाताओं की संख्या में बढ़ौती हो सकती है| यह गोमाता का सिर शरीर के प्रमाण में बड़ा होता है| सींग छोटी और पाहाड़ो में सरलता से घुमने के कारण इनकी खाने पीने की व्यवस्था सरलता से हो सकती है|


सीरी गोमाता
दार्जिलिंग के पहाड़ों में विकसित यह गोमाता सिक्किम और भूटान में देखने को
मिलती है| यह
गोमाता का मूल स्थान भूतान है| परंतु भारत के पूर्व प्रदेशो में भी इनका अस्तित्व
होने के कारण इनका नाम भारतीय देसी गोमाताओं में भी लिया जाता है| सीरी जाती की गोमाता
शरीर से मजबूत होती है|कान
छोटे होते है| यह गौवंश
के बैल पहाड़ों में सरलता से आना जाना कर सकने के कारण उनका महत्व विशेष है|
लोहानी गोमाता
यह गोमाता की ऊंचाई ज्यादा है| लाल रंग में सफ़ेद धब्बे। बलूचिस्तान के पर्वतों में भी देखने को मिलती है| कम दूध देने वाली यह गोमाता के बैल माल खिचने में उपयोगी है| यह गोमाता भी सिंधी गोमाता की तरह गरमी और ठंडी सहन कर सकती है|
